मुश्किल है शब्दों में जान फूंकने वाले को शब्दों में बांधना
रूह देखी है कि कभी, रूह को महसूस किया है... 'महसूस' जी हां
इसी एक शब्द को जिया है और कलम के रास्ते सफों पर उतारा भी है, रूमानी
दुनिया के बेताज बादशाह गुलजार ने। अविभाजित भारत में जन्में और बंटवारा भी
देखा और उसके दर्द को सहन किया, दुनिया भी देखी है और हर एक पल को महसूस
कर अपनी नज्म, गीत, गजल और कहानियों में बखूबी उतारा और वो भी ऐसा कि कोई
दूसरा कर ही नहीं सकता।
गीतकार के अलावा कवि,
पटकथा लेखक, फ़िल्म निर्देशक और नाटककार गुलजार जब भी अपनी कोई रचना खुद
पड़ते हैं तो लगता है कि कोई शब्दों में जान फूंक रहा हो, झिलमिलाती सांझ
की ठंडी हवा में मिठास घोल रहा हो, हर एक नज्म ऐसे चमकती है जैसे किसी
दरिया के पानी पर सूरज की धूप पड़ी हो। गुलजार ही हैं जो जिंदगी को समझा
सकते हैं कि तुझसे नाराज नहीं जिंदगी, हैरान हूं मैं... तेरे मासूम सवालों
से परेशान हूं मैं... गुलजार के नाम से दुनिया में मशहूर सम्पूर्ण सिंह
कालरा को देश ने पद्म भूषण से तो दुनिया ने ऑस्कर अवार्ड से नवाजा है। इसके
अलावा ग्रैमी अवार्ड, साहित्य अकादमी पुरस्कार,दादा साहब फालके और कई बार
फिल्म फेयर अवार्ड भी मिल चुके हैं।
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दिल्ली
दूरदर्शन की एक एंकर ने गुलजार साहब के साथ साक्षात्कार के दौरान बहुत ही
खूबसूरती से उनका परिचय दिया था - उस एंकर ने कहा कि कैसे बयां करूं उन्हें
जो हवाओं पे लिखते हैं, हाथों में धूप मलते हैं, आंखों में से महकती
खुश्बू निकाल लाते हैं ..और फिर उन्हीं आंखों से कजरारे सपने दिखाते हैं,
इतना ही नहीं ऊपर से शोर भी मचाते हैं कि जंगल में चड्डी पहन के फूल खिला
है... अब इन्हें शब्दों में कैसे बांधा जाए। गुलजार साहब के बारे में शायद
इससे अच्छा कुछ और कहा ही नहीं जा सकता वाकई में जो शब्दों में आत्मा डालता
हो भला उसे शब्दों में कैसे पिरोया जा सकता है।
- अपनी नज्मों में जिंदगी और उस जिंदगी को परदे पर उकेरने वाला सम्पूर्ण सिंह कालरा मुंबई में मोटर गैराज में धीरे-धीरे 'गुलजार' बनता रहा और आज न जाने कितने टूटे हुए दिलों की मरम्मत कर रहा है।
गुलजार साहब से एक बार जब पूछा गया कि सिनेमा की दुनिया में इतने लंबे समय तक जमें रहने का राज क्या है तब उस दिन जो गुलजार ने बोला वो सिर्फ फिल्मी दुनिया में ही नहीं असल जिंदगी में टिके रहने का राज जैसा लगा, उन्होंने कहा कि इसकी वजह तो मैं ही हूं...ढीट हूं, रुक नहीं रहा हूं। बाकी हवाओं पे लिख दो हवाओं के नाम हो या कोई और जितने भी झूठ मिलते रहे उन्हें बोलता रहा और आगे भी मिलते रहे तो बोलता रहूंगा। कल्पनाएं गुलजार की जब तक रहेंगी उन्हें बयां करता रहूंगा।
महज तीन लाइनों में
सब कुछ कह देने वाली त्रिवेणी के सृजक गुलजार ने सिनेमा जगत को मेरे अपने,
आनंद, आंधी, मौसम, मिर्जा गाबिल और नमकीन जैसी फिल्में दीं और साथ ही कई
सारे सदाबहार गीत जो आज भी हर दिल में बसते हैं और लोग इन्हें गुनगुनाते भी
हैं। चाहे आंखों में उतरकर बहके हुए अंदाज को बयां करना हो या फिर
चप्पा-चप्पा चरखा चलाना हो हर एक पल को जीकर उसे लिखने की अदा ने फिल्मी दुनिया में गुलजार को अलग ही जगह दी है।
फिल्म
निर्माता विमल रॉय को गुलजार अपना गुरू मानते हैं। विमल रॉय से जब गुलजार
मिलने गए तब तक वे फिल्मों में नहीं जाना चाहते थे, वे सिर्फ साहित्य से ही
जुड़े रहना चाहते थे लेकिन, जब विमल दा ने गाना लिखने को कहा तो गुलजार ने
मेरा गोरा अंग लई ले, मोहे श्याम रंग दई दे...लिखा लेकिन, सचिन देव बर्मन
ने एक नए राइटर से गाना लिखवाना ठीक नहीं समझा, इस बात का विमल दा को बहुत
खेद हुआ कि इतना अच्छा गाना लिखा है फिर भी फिल्म में नहीं ले रहे हैं।
इसके बाद विमल दा ने गुलजार को अपनी नई फिल्म के लिए बतौर असिस्टेंट काम
करने का ऑफर दे दिया और कहा कि 'तुम्हे अच्छा लगेगा लेकिन, तुम वापस उस
गैराज में जाकर अपना समय खराब नहीं करोगे', इतना सुनकर गुलजार रो पड़े
क्योंकि यह अपनेपन वाली बात उनके खानदान में भी किसी ने नहीं कही थी। और आज
भी जब इस किस्से को सुनाते हैं तो उनका गला भर आता है।
राह
पे रहते हैं यादों पे बसर करते हैं, खुश रहो अहले वतन हम तो सफर करते
हैं... गुलजार की फिल्म 'नमकीन'में उनका ही लिखा ये गाना एक ड्राइवर की
जिंदगी को दिखाता है लेकिन, इस गाने को हम अपनी जिंदगी में जीने लगें तो
शायद हर एक पल को महसूस कर पाएं और उसे जी सकें। गुलज़ार साहब के ऐसे ही कई गानों की लंबी
फेहरिस्त है, जिनका जिक्र एक लेख में करना मुश्किल है। अपनी नज्मों में
जिंदगी और उस जिंदगी को परदे पर उकेरने वाला सम्पूर्ण सिंह कालरा मुंबई में
मोटर गैराज में धीरे-धीरे 'गुलजार' बनता रहा और आज न जाने कितने टूटे हुए
दिलों की मरम्मत कर रहा है।
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नज्म लिखना और फिर
उससे बेइंतहा मोहब्बत करना और उस मोहब्बत के लिए फिर एक और नज्म लिख देना,
गुलजार साहब का ये अंदाज ही तो है, जिसने उन्हें सदाबहार बना दिया है।
जिंदगी की दौड़ में अगर ऑस्कर जीतना हैं तो जिंद शामियाने के तले और जरी वाले नीले आसमां के तले जय हो तो करना ही पड़ेगा।
गुलजार साहब के 84वें जन्मदिन पर उनके लिए मेरी एक कोशिश
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