नाम शबाना...बेबी के प्लॉट की फुल स्टोरी
फिल्म बेबी में ढिशुम-ढिशुम करने वाली लड़की की कहानी
तापसी पन्नू को इस फिल्म में रोल दिया गया पिंक मूवी में उनका परफॉर्मन्स देखकर या फिल्म बेबी में उनके काम को देखकर कन्फ्यूज़ मत होइए दरअसल फिल्म #नाम शाबाना अक्षय कुमार की फिल्म बेबी में एक महत्वपूर्ण किरदार निभाने वाली लड़की की कहानी है जो की भारत की ख़ुफ़िया एजेंसी के लिए काम करती है वो कैसे देश की सेवा करने के लिए इन ख़ुफ़िया एजेंसी में आती है इस फिल्म में बताया है ।![]() |
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तापसी पन्नू के अलावा फिल्म में अक्षय कुमार और मनोज बाजपेयी ,अनुपम खैर ,डेनी भी हैं जिन्हें देखने के लिए दर्शकों का एक विशेष समूह जरूर ही जाता है ,फिल्म के खलनायक पृथ्वीराज सुकूमरण तमिल फिल्मों के मल्टी टैलंटेड अभिनेता हैं । नाम शाबान के डायरेक्टर शिवम नायर अपने डेली शॉप सी हॉक्स के लिए जाने जाते हैं 2015 में उनकी फिल्म भाग जॉनी फिल्म जगत में कोई ख़ास जगह नहीं बना पाई थी । फिल्म के तकनीकी पहलु की बात कही जाए तो कहानी का ख़ुफ़ियाकरण और भी अच्छा हो सकता था ,फाइट सीन में असलियत दिख रही है जो की आपको प्रभावित करेगी । फिल्म की कहानी में ज्यादा मोड़ नहीं है जो की आज कल दर्शकों की पसंद के मुताबिक है , फिल्म का एक डायलॉग जिसमे मनोज बाजपेयी कहते हैं कि मोबाइल फोन और सोशल मीडिया के इस दौर में भी अपने उद्देश्य के लिए इतनी संवेदनशील लड़की को पाकर बहुत अच्छा लगा , मतलब तो आप समझ ही गए होंगे ।
फिल्म में भारत की ख़ुफ़िया एजेंसी के काम करने का तरीका कितना काल्पनिक है और कितना सत्य ये बताना तो मुश्किल ही है ,यदि सीसीटीवी कैमरे की मदद से अगर किसी संदिग्ध का पता यदि ख़ुफ़िया एजेंसी लगाती हैं (फिल्म में दिखाया गया है ) यह बात जरूर वैचारिक कब्ज़ आपके लिए पैदा कर सकती है क्योंकि भारत में लगे अधिकतर सीसीटीवी कैमरे तो भगवान भरोसे ही चल रहे हैं। फिल्म के रेटिंग पॉइंट की बात की जाय तो टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने इसे 3 और इंडिया टुडे ने ढाई आंक दिए हैं ।फिल्म के पहले शो में दर्शक भले ही काम रहे हों लेकिन जितने भी थे हर किरदार के लिए ताली बजाने को मजबूर हो गए खासकर तापसी पन्नू को लेकर लड़कियों में खासा उत्साह दिखा । अब देखना यह है कि #नाम शबाना बॉक्स ऑफिस पर कितने दिन टिक पाती है ।
वर्तनी संबंधी गलतियां हैं जल्दबाजी में हो गई होंगी। दोबारा पढोगे तुम्हे खुद समझ मे आएगी। बाकी फ़िल्म का पूरा कथ्य पेश करना समीक्षा के लिए ठीक नही पाठक की फ़िल्म के प्रति जिज्ञासा बनी रहना चाहिए। फ़िल्म में जिन दृश्यों या जिन बिम्बों क् प्रयोग किया गया है उसकी गहराई को बताना समीक्षक के लिए जरूरी है मसलन बिना संवाद अदायगी के और बिना चेहरे पे हावभाव लाये भी संजीदा एक्टिंग होती है ये बताती है तापसी पन्नू जब अपने प्रेमी के इज़हारे इश्क पर भी भावहीन चेहरे के साथ सिर्फ निगाहों से अदाकारी करना जो अक्सर हम अजय देवगन में देखा करते थे ये परिपक्व अभिनेता की निशानी होती है। ऐसे कई अन्य दृश्य भी हैं..स्टोरी का प्लाट और छोटी छोटी चीजो की डिटेलिंग कमाल है। दूसरी बात किसने कितनी रेटिंग दी ये बताना भी जरूरी नही है क्योंकि आपकी लेखनी में आपका दृष्टिकोण ही उभरकर आना चाहिए। अहम बात ये है कि मौजूदा दौर में इस तरह की फिल्में बनना बदलाव का एक ध्यान देने लायक संकेत है। महिलाओं के प्रति बदली सोच की झलक समाज और सिनेमा में दिख रही है। जो रोल आजकल की अदाकाराएं कर रही हैं वो मधुबाला, सायरा बानो, सिमी ग्रेवाल जैसी अदाकाराओं के नसीब में नही आ सकते थे क्योंकि क्वीन, कहानी, मर्दानी, नाम शबाना, पीकू ये आज के दौर की अपनी पूंजी है। इनके लिए समाज मे स्वीकार्यता है इसलिए निर्देशकों के पास ऐसा सृजन है। बहरहाल लिखने का प्रयास उम्दा है लगातार लेखन होगा और साथ म् उतना ही ज्यादा पाठन होगा तो बेहतरी भी बढ़ती जाएगी। Keep Writing.��
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका इतना गौर करने के लिए ...आपका दिशा निर्देशन ऐसे ही मिलता रहे धन्यवाद
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